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अंतरराष्‍ट्रीय विधि परिभाषा कोश (अंग्रेज़ी-हिंदी)
Definitional Dictionary of International Law (English-Hindi)
(876 words)

शब्द-संग्रह निर्माता
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology)
Hindi equivalents for 876 base words in English have been evolved along with definitions
अंग्रेज़ी के ८७६ मूल शब्दों के हिंदी में पर्याय-निर्माण एवं उन्हें परिभाषित किया गया है ।

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Shri. Mohan Lal Meena
श्री. मोहन लाल मीना (gmohancsttmhrd@gmail.com)
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air law"हवाई - परिवहन विधिहवाई - परिवहन से संबंधित नियमावली जिसकी व्याख्या 1919 के पेरिस अभिसमय और 1944 के शिकागो अभिसमय द्वारा की गई है ।"प्रतिपुष्टि
anti - hijacking law"विमान अपहरण विरोधी विधिदूसरे महायुद्ध के पश्चात संसार के अनेक भागों में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों का उद्भव हुआ और इनमें से अनेक ने विमानों में हिसात्मक एवं आतंकवादी क्रियाओं का भी सहारा लिया । इससे एक नई समस्या उत्पन्न हुई जिसे विमान अपहरण का नाम दिया जाता है । इस प्रक्रिया में विमान के निर्दोष यात्रियों और कर्मियों का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है और विमान - यात्रा जो सादारण रूप से भी जोखिमपूर्ण है, भयावह बन जाती है ।
अतः इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ कि विमान के अपहरणकर्ताओं को दंड देने की समुचित व्यवस्था की जाए, चाहे वे अपहरणकर्ता राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित क्यों न हों । दूसरे, यह भी सुनिश्चित काय जाए कि क्षेत्राधिकार के अभाव में कोई इस प्रकार का अपराधी दंड से न बच सके । तीसरे, यह भी आवश्यक समझा गया कि विमान अपहरण को प्रत्यर्णता के लिए एक साधारण फौजदारी अपराध माना जाए न कि राजनीतिक अपराध ताकि विमान - अपरहणरकर्ता इस आधार पर दंड अथवा प्रत्यर्पण से बच न सके कि वह एक राजनीतिक अपराधी है और उसके द्वारा किया गया कृत्य राजिनीतिक अपराध है ।
इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए जिस विधि का विकास हुआ उसे विमान अपहरण विरोधी विधि का नाम दिया जा सकता है । इस विधि के मुख्य रूप से तीन स्ततंभ हैं 1. टोकियो अभिसमय, 1963 2. हहेग अभिसमय, 1970 और 3. मांट्रियल अभिसमय, 1971
सन्म 1982 में भारतीय संसद ने एक कानून बनाकर विमान अपहरण विरोधी विषयक टोकियो और हेग अभिसमयों को अपनी राष्ट्रीय विधि में रूपांतरित कर लिया ।
इन अभिसमयों की विस् जानकारी के लिए संबंधित प्रविष्टियाँ देखिए ।"
प्रतिपुष्टि
basis of International law"अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधारइससे तात्पर्य यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के बाध्यकारी होने का क्या कारण है अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय विधि को क्यों बाध्यकारी माना जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप तीन विचारधाराओं अथवा सम्प्रदायों का विकास हुआ है :
1. प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय;
2. व्यावहारवादी सम्प्रदाय; और 3. ग्रोशसवादी सम्प्रदाय ।
प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि इस विधि के सिद्धांत और नियम प्राकृतिक विधि के ही रूपांतरण मात्र हैं और प्राकृतिक विधि ही उनका स्रोत है । अतः इनका पालन करना प्राकृतिक और स्वाभाविक है ।
व्यवहारवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि यह विधि राज्यों की सहमति पर आधारित है ।
ग्रोशसवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता के दोनों ही आधार हैं । अंशतः यह विधि प्राकृतिक विधि और अंशतः राज्यों की सहमति का प्रतिफल है ।
वर्तमान काल में ग्रोशसवादी विचारधार को स्वा सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है ।"
प्रतिपुष्टि
Case law"निर्णय विधिअंतर्राष्ट्रीय विधि का एक महत्वपूर्ण स्रोत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय या न्यायाधिकरणों और राष्ट्रीय न्यायालयों द्वारा विभिन्न विवादों में दिए गए निर्णय भी होते हैं या इन निर्णयों को विवादों के विभिन्न पक्षकार नजीरों रूप में प्रसुत्त करते हैं । यद्यपपि न्यायालय द्वारा इनको मानना आवश्यक नहीं है परंतु ये न्यायालय को प्रबावित अवश्य करते हैं और कालांतर में ये प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि का रूप ग्रहण करके अंतर्राष्ट्रीय विधि के विकास में सहायक होते हैं ।"प्रतिपुष्टि
classical international law"पुरातन अंतर्राष्ट्रीय विधिराज्यों के पारस्परिक संबंधों को विनियमित करने वाले वे कानून या नियम जिसके विषय केवल राज्य ही माने जाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय विधि का उद्देश्य राज्यों के केवल राजनयिक संबंधों को नियमित करना और उनके मध्य शांति बनाए रखना ही है । इस मत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि का एकमात्र स्रोत भी राज्यों की सहमति हैं ।"प्रतिपुष्टि
codification of internation law"अंतर्राष्ट्रीय विधि संहिताकरणवर्तमान प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय विधि के सिद्धांतों एवं नियमों को सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा सुस्पष्ट रूप से लिपिबद्ध कर उन्हें एक संहिता का रूप देना । वर्तमान काल मे अंतर्राष्ट्रीय विदि के संहिताकरण में संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है और इसमें संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राषट्रीय विधि आयोग का विशएष योगदान है ।"प्रतिपुष्टि
common law"लोक विधिइंग्लैंड में प्रचलित एवं न्यायालयों दवारा मान्यताप्राप्त वह विधि जो संसद द्वारा निर्मित न होकर प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं और परंपराओं का प्रतिफल है और जिसे वही स्थान प्राप्त होता है जो संसद द्वारा निर्मित विधि को । परंतु दोनों में टकराव होने की स्थिति में संसदीय विधि ही उत्कृष्ट मानी जाती है ।
ब्लैकस्टोन ने प्रथागत अंतर्राष्ट्रिय विधि के सिद्धांतों का पूरण समावेश इंग्लैंड की सामान्य विधि में माना है और इसलिए प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि को राष्ट्र के कानून के रूप में स्वीकार किया गया है ।"
प्रतिपुष्टि
conflict of laws (=private international law)"विधि वैष्म्यकिसी व्यक्ति के अधिकारों को लेकर विभिन्न राज्यों अथवा क्षेत्रधिकारों में मतभेद को दूर करने वाली विधि । इसे वैयक्तिक (प्राइवेट) अंतर्राषअट्रीय विधि भी कहा जाता है ।"प्रतिपुष्टि
conventional international law"अभिसमयात्मक अंतर्राष्ट्रीय विधिअंतर्राष्ट्रीय विधि को दो रूपों में विशअलेषित किया जाता है । पहला परंपरागत और दूसरा अभिसमयात्मक अंतर्राष्ट्रीय विधि । दूसरे रूप मे वे नियम सम्मिलित होते हैं जिनका निर्माण अथवा विकास विभिन्न अभिसमयों के माध्यम से होतै है । दूरसे विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय विधि का विकास अभिसमयों के माध्यम से ज्यादा हुआ है क्योंकि तेजी से बदलती हुई अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों और विधि के बीच के अंतराल को अभिसमयात्मक विधि से ही पूरा किया गया है ।"प्रतिपुष्टि
customary international law"प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधिएक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया से गुजर कर विकसित होने वाली ऐसी प्रथाओं या रिवाजों पर आधारित नियम जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्वीकृति प्रदान कर उनकी बाध्यता को मान लिया है । इसका आधार दीर्घ, सतत व्यावहार और इनके प्रति राज्यों की मौत सहमति है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण विधि के संहिताकरण और विभिन्न संधि - विधियों से पहले प्रथाएँ ही अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रमुख स्रोत थीं, किंतु वर्तमान में संधि -विधि के प्रति अधिक आग्रह के कारण प्रथाओं का महत्व कम होता जा रहा है ।"प्रतिपुष्टि
doctrine of natural law"प्राकृतिक विधि सिद्धांतआचरण के वे नियम जिनके बारे में यह विश्वास है कि मानव व्यवहार में इनका पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए । इन नियमों का स्रोत कोई शासक या विधायिका न होकर स्वयं मानव विवेक माना जाता है । ये समय और स्थान की सीमाओं से मर्यादित नही होते । इनके बाध्यकारी माने जाने का कारण यह है कि ये नियम मनुष्य जोकि एक विवेकशील एवं सामाजिक प्राणी है, की प्रकृति के अनुरूप होते हैं । एक मत यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार प्राकृतिक विधि के ये नियम ही हैं ।"प्रतिपुष्टि
general international law"सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधिराज्यों के मध्य पारस्परिक व्यवाहर को नियमित करने वाले नियमों व सिद्धांतों का समूह जो सामान्यतः सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं ।
इस प्रकार के सामान्य रूप से लागू होने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियम उन नियमों से भिन्न होते हैं जो संसार के कुछ विशेष - क्षेत्रों में विकसित हुए हैं (जैसे लातीनी अमेरिका में) और जिन्हें क्षेत्रीय या विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि कहा जाता है ।"
प्रतिपुष्टि
general principle of law"विधि के सामान्य सिद्धांतसन् 1945 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि ने सभ्य राज्यों द्वारा मान्यताप्राप्त विधि के सामान्य सिद्धांतों को भी संधियों और प्रथाओं के साथ - साथ अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक मूल स्रोत माना है । फ्रीडमैन आदि लेखकों का मत है कि यह एक ऐसा स्रोत है जिसके भविष्य में अधिकाधिक उपयोग होने की संभावनाएँ हैं । ओपेनहायम ने भी अंतर्राष्ट्रीय विदि के लि इसेके महत्व को स्वीकार किया है ।
विधि के सामान्य सिद्धांतों से तात्पर्य है वे सिद्धांत जो संसार की प्राधन विधि प्रणलियों में समान रूप से पाए जाते हैं और जो सारमूलक और प्रक्रियात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं । जैसे एक सारमूलक सिद्धांत यह है कि संधि की किसी व्यवस्था का पालन न करने पर क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए । इसी प्रकार एक प्रक्रियात्मक सिद्धांत यह है कि किसी न्यायिक निकाय द्वारा दिया गया निर्णय दोनों पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है ।"
प्रतिपुष्टि
humanitarian international law"मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधियुद्ध विधि का वह भाग जिसका उद्देशय युद्ध की संक्रियाओं में मानवीयता के मानदंडों को लागू करना है । जैसे - बीमार और घायल सैनिकों की चिकित्सा और उपचार संबंधी नियम, युद्धबंदियों के प्रति व्यवहार संबंधी नियम, असैनिक जनता के प्रति व्यवहार संबंधी नियम,ये सब मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय हैं ।
मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रारंभ सन्म 1868 के जेनेवा सम्मेलन से हुआ जिसमें स्थल - युदध में बीमार और घायलों की चिकित्सा और उपचार संबंधी नियम अपनाने के लिए एक अभिसमय पर हस्ताक्षर किए गए थे । इस अभिसमय को रेडक्रास कंवेंशन भी कहते हैं ।
मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों में निरंतर सुधार होता रहा है । सन् 1949 में जेनेवा सम्मेलन में इन विषयों से संबंधित चार अभीसमय अपनाए गए थे जो जेनेवा अभिसमय के नाम से विख्यात हैं । इन अभिसमयों की व्यवस्था में भी निरंतर पुनरीक्षण एवं संशोधन होता रहा है और इस हेतु रेडक्रास की अंतर्राष्ट्रीय समिति बराबर प्रयत्नशील है ।"
प्रतिपुष्टि
international administrative law"अंतर्राष्ट्रीय प्रशासनिक विधिअंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जिसका विषय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं की कार्यप्रणाली इनके पारस्परिक और अन्य राज्यों से तथा व्यक्तियों से संबंधों का नियामन करना ह । संक्षेप मे इसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों का कानून भी कहा जा सकता है । यह अंतर्राष्ट्रीय वधि के नवीन आयामों में से एक है और उसकी परिवर्तित संरचना का प्रतीक ह ।"प्रतिपुष्टि
international customary law"अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत नियमदे. customary international law."प्रतिपुष्टि
international economic law"अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विधिदूसरे माहयुद्ध के उपरांत यह विचार प्रबल हुआ कि युद्ध की जड़ में आर्थिक असंतोष और असंतुलन है । अतः आर्थिक क्षेत्र में भी एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए जो विश्व की आर्थिक व्यवस्था को इस प्रकार नियंत्रित और नियमित कर सके जिससे सब देशओं का समुचित विकास हो और परस्पर संघर्ष की संभावनाएँ न्यूनतम हो जाएँ । इस उद्देश्य से अनेक आर्थिक संगठनों एवं संस्थाओं का निर्माण हुआ जिनमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक), पुरशउल्क और व्यापार संबंधी सामान्य समझौता (गाट ) प्रमुख थे । कुछ समय पश्चात अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ की भी स्थापना हुई । परंतु जैसे - जैसे उपनिवेशवाद का पतन होता गया और नवीन स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, यह व्यापक रूप से अनुभव किया जाने लगा कि है आर्थिक व्वस्था संसार के विकसित देशों के लिए अधिक लाभकारी है और मूलतः इन्हीं का हित संरक्षण करती है तथा इसे विकासशील देशों के पक्ष में करने के लिए इसमें आमूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है । इस उद्देश्य से प्रेरित होकर विकासशील और विकसित देशों में वार्ता का क्रम चला । विकासशील देशों ने महासभा में यह प्रस्तवाव रखा कि विश्व की आर्थिक व्यवस्था का पुनर्निर्माम किया जाना चिहए और एक वीन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्वस्था की स्थापना की जानी चाहिए । इन उद्देश्यों की प्राप्ति में विकासशील देशों ने भी परस्पर सहयोग और सहायता की आवश्यकता का अनुभव करते हुए आपस में संवाद प्रारंभ किया र क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण एशिया के राज्यों ने एक संगठन की स्थापना की जिसे दक्षेस अथवा सार्क कहा जता है ।
युद्धोत्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के निर्माण र पुनर्निर्माण के ये प्यास भी अंतर्राषअटरीय विधि के विषय हैं और इन्हें सामूहिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विधि का नाम दिया जाता है । यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान काल में अंतर्राष्ट्रीय विदि का यह पक्ष अर्थात् आर्धिक पक्ष अधिकाधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि इसका संबंध सबी देशों के विकास और उनकी जनता तके जीवन - स्त्र में निरंतर सुधार लाने से है ।"
प्रतिपुष्टि
international law"अंतर्राष्ट्रीयव विधिऐसे सिद्धांतों एवं नियमों का समूह जो मूलतः राज्यों के पारस्परिक संबंधों में उनके आचरण को नियमति एवं नियंत्रित करते हैं । वर्तमान काल में अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं संस्थाओं के प्रशासन तथा कार्य संचालन संबंधी नियम भी अंतर्राष्ट्रीय विधि की परिधि में सम्मिलित माने जाते हैं ।
यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय विधि के मूल विषय राज्य ही हैं परंतु कुछ सीमा तक व्यक्तियों क अधिकार और कर्तव्य भी अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा नियमित और निर्धारित होते हं ।
वास्तव मे आज अंतर्राष्ट्रीय विधि को संपूर्ण मानव जाति की विधि अथवा विशअव विधि के रूप मे देखा ज रहा है जसका उद्देश्य न केवल विश्व शआंति व सुरक्षा है, अपितु पूर्ण मानव कल्याम अथवा उत्थान है ।
विशिषअट अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्नता स्थापित करने के लिए (जिसका उल्लेख हम यथास्थान करेंग ) इसे सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि अथवा सामान् अंतर्राष्ट्रीय विधि अथवा सर्वदेशीय अंतर्राषअटरीय विधि भी कहा जाता है ।
दे. particular international law भी ।"
प्रतिपुष्टि
International law Association"अंतर्राष्ट्रीय विधि संघअंतर्राष्ट्रीय विधि में रूचि रखने वाले विद्वानों और बुद्धिजीवियों का एक गैर सरकारी संघ, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और विकास के लिए विविध षयों पर प्रस्तावित विधि के पाररूप तैयार करना ह । इसका मुख्यालय लंदन में है । इसकी राष्रीय शाखाएँ विश्व के अनेक देशों मे स्थापित हैं । इसके सदस्यों मे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय विधि के विद्वान विधिशास्त्री, न्यायाधीश आदि होते ह । इंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और उसके उत्रोत्त्र विकास में इस संग के योगदान की सर्वथा सराहना की गई है ।"प्रतिपुष्टि
International law Commission"अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोगअंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास और उसके संहिताकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1947 में स्थापित एक आयोग । इसके 21 सदस्य हैं जो अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता होते हैं । इनका चुनाव सदस्य देशों द्वारा नामित प्रतिनिधियों में से स.रा. महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है । इसमें एक राज्य का एक से अधिक प्रतिनिधि नहीं होता ।
यह आयोग अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और विकास हेतु उपयुक्त विषयों पर प्रारूप तैयार करता है जो राज्यों की स्वीकृति पाकर अंतर्राष्ट्रीय विधि के भाग बन जाते हैं । इस हेतु राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने संहिताकरण और विकास के क्षेत्र मे सराहनीय कार्य किया है । इसकी प्रारंभिक उपलब्ध्यों में राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों संबंधी घोषणा पत्र, न्यूरेम्बर्ग चार्टर तथा निर्णय मे मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय विधि में सिद्धांतों का निरूपण और मानवता की शांति और सुरक्षा के लिए घातक अपराधों की संहिता तैयार करन उल्लेखनीय हैं । इसके अतिरिक्त अनेक विषयों पर आयोग ने संहिता के प्रारूप तैयार किए थे, जिन्हें स्वीकार करने के लिए कई अंतर्राष्टरीय सम्मेलन आयोजित हुए हैं । ये विषय थे - समुद्री कानून, राजनयिक प्रतिनिधियों के विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ, वाणिज्य दूतों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ, संधियाँ आदि ।
आजकल यह आयोग अनेक विषयों पर नियमावलियों के प्रारूप तैयार करने मे लगा है, जैसे राज्य उत्तराधिकार, राज्य उत्तरदायित्व, ऐतिहासिक जल क्षेत्र विदेशी राज्यों की क्षेत्राधिकार उन्मुक्ति, प्रत्यर्पण, शरणाधिकार और पर्यावरण आदि ।"
प्रतिपुष्टि
lawful combatant"वैध संयोधीदे. Combatant."प्रतिपुष्टि
law making treaties"विधि निर्मात्री संधियाँविधि निर्मात्री संधियों से तात्पर्य उन संधियों से है जो राज्यों के परस्पर संबंधों को नियमित अथवा नियंत्रित करने के उद्देश्य से आचरण के नए नियमों का प्रतिपादन अथवा प्रचलित नियमों का संशोधन अथवा उन्हें निरस्त करती हैं । इनका विषय कोई अंतर्राष्ट्रीय संगठन, संस्था, अभिकरण या विधान भी हो सकता है ।
विधि निर्मात्री संधियाँ प्रायः बहुपक्षीय संधियाँ होती हैं यद्यपि अपवादस्वरूप कुछ द्विपक्षीय एवं सर्वदेशीय विदि निर्मात्री संधियों के भी नाम लिए जा सकते हैं ।
विधि निर्मात्री संधियों का प्रारंभ मूलतः 19 वीं शताब्दी के मध्य से होता है और बीसीं शताब्दी के आते - आते इन संधियों नें अतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उस व्वस्था को जन्म दिया जिसे अंतर्राष्ट्रिय विधि निर्माण कहा जाता है । इन संधियों की विशेषता यह है कि ये अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रत्यक्ष स्रोत होती है ।"
प्रतिपुष्टि
law of peace"शांति विधिअंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जो राज्यों के शांतिकालीन संबंधों अथवा आचरण को नियंत्रित एवं नियमित करता है ।
वर्तमान काल में शांतिकालीन विधि का दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है :-
1. वे विषय जिनका संबंध राज्य के अस्तित्व से है जैसे राज्य का प्रदेश, प्रदेश - प्राप्ति के साधन, मान्यता, क्षेत्राधिकार, राजदूत का अधिकार आदि ।
2. वे विषय जिनका संबंध राज्यों के पारस्परिक संबंध और सहयोग से है जैसे प्रत्यर्पण, राज्य उत्तरदायित्व वं अंतर्राष्ट्रीय दावे, संधियाँ, आर्थिक संबंध तथा अन्य क्षेत्र जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, सुरक्षा संबंधी, पर्यावरण संबंधी, निःशसत्रीकरण संबंधी क्षेत्र जिनमें राज्यों के पारस्परिक सहयोग की आवश्यकताएँ और संभावनाएँ उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं ।"
प्रतिपुष्टि
laws of the sea"समुद्र विधि, समूद्री कानूनसमुद्री व्यवस्था एवं समुद्र के उपयोग संबंधी कानून व नियम, जिनका निरूपण समय - समय पर स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय नुबंधों में किया गया है । ये अति प्राचीन काल से राज्यों के पारस्परिक व्यवहार में विकसित होते रहे हैं और इनका संहिताकरण करे में संयुक्त राष्ट्र को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है । 1958 के चार जेनेवा अभिसमय और 10 दिसंबर, 1982 को तृतीय समुद्र विधि सम्मेलन त्वारा पारित अभिसमय इसके प्रमाण है ।"प्रतिपुष्टि
law of the space"अंतरिक्ष विधिअंतर्राष्ट्रीय विदि का यह क अपेक्षाकृत नया विषय है । इसका प्रारंभ 1957 में अंतरिक्ष में प्रथम सोवियत स्पुतनिक छोड़े जाने से होता ह । इस घटना से अंतरिक्ष की वैधिक स्थिति और उसके उपयोग में राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर अनेक प्रश्न उठ खड़े हुए जिनके समाधान के लिए अनेक संधि, समझौते आदि संपादित किए गए । इनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं :-
1. 20 दिसंबर, 1961 का महासभा का प्रस्ताव
2. 13 दिसंबर, 1963 का महासभा का एक अन्य प्रस्ताव । इसमें अंतरिक्ष संबंधी कुछ सामान्य सिद्धांतों की घोषणा की गई थी
3. सन् 1967 की अंतरिक्ष संधि
4. सन् 1968 का अंतरिक्ष यात्रियों संबंदी समझौता और
5. सन् 1972 का अभिसमय जिसमें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं से हुई हानि के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के सिद्धांतों का निरूपण किया गया था ।
इन सब प्रस्तावों , संधियों, समझौतों, अभइसमयों के परिणामस्वरूप एक विस्तृत नियमावली का विकास हुआ है जिसे सामूहिक रूप से अंतरिक्ष विधि का नाम दिया जाता है । इस विधि का केंद्रभूत आधार यह है कि अंतरिक्ष और चंद्रमा सहित सभी खगोल पिंड संपूर्ण मानव जाति की संपदा हैं । कोई भी राज्य किसी भी प्रकार से इनका स्वामित्वहरण नीहं कर सकता । इनका गवेषण और उपयोग संपूर्ण मानव जाति के हित में और उसेक लाभ के लिए किया जाना चाहिए ।"
प्रतिपुष्टि
laws of war"युद्ध विधिअंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जो राज्यों के मध्य युद्ध छिड़ने पर उनके पारस्परिक संबंधों अर्थात उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों को निर्धारित करता है ।
इस विधि के तीन भाग हैं 1. स्थल युद्ध विधि 2. समुद्री युद्ध विधि और 3. वाया युद्ध विधि ।
"
प्रतिपुष्टि
maritime law"समुद्र विधि, समुद्री कानूनदे. Law of the sea."प्रतिपुष्टि
municipal law"राष्ट्रीय विधि, राष्ट्रीय कानूनवह विधि - व्यवस्था जो किसी राज्य - विशेष के सक्षम विधि - निर्माणकर्ता अंगों द्वारा निर्मित और अंगीकरा की जाती है और जो संबंधित राज्य की प्रादेशिक सीमाओं में लागू होती है । इसीलिए इसे राष्ट्रीय विधि कहते हैं ।
अंग्रेजी में राष्ट्रीय विधि को म्यूनिसिपल विधि () इसलिए कहा जाता है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में राज्य का वही स्थान है जो एक राज्य के संदर्भ में उसके अधीन गठित नागरपालिकाओं का होता है । अतः अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से जिसे हम राष्ट्रीय विधि कहते हैं वह एक प्रकार से नागरपालिकीय कानून मात्र है ।"
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natural law"नैसर्गिक विधि, प्राकृतिक विधिदे. Jus naturale."प्रतिपुष्टि
outlawry of war"युद्ध - निषएध, युद्ध - वर्जनइसाक, अर्थ है संप्रभु राज्यों का युद्ध का परंपरागत अधइकार न रहना ।सर्वप्रथम 1928 मे पेरिस मे अमेरिका और फ्रांस के बीच एक संधि हुई थी जिसे कैलाग - ब्रियाँ पैक्ट अथवा पेरिस पैक्ट भी कहते हैं । इसके अनुसार राज्यों ने राष्ट्रीय नीति के उपकरण के रूप मे युद् के अधिकार के परित्याग करने की घोषमा की थी । इससे पूर्व राज्ट्र संघ की प्रसंविदा मे युद्ध के अधइकार को सीमित करने की व्यवस्था की गी थी । संयुक्त राअटर के चार्टर में युद्धतो क्या, सभी प्रकार के बल प्रयोग अथवा बल प्रयोग की धमकी देने के अधिकार से भी राज्यों ने अपने आप को वंचित कर दिया है । इस प्रकार आज की अंतर्राष्ट्रीय विधी के अनुसार युदध पूर्णतया वर्जित हो गया है ।"प्रतिपुष्टि
particular internationa law"विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधिविशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय कानून
राष्ट्रों के आचारण की नियमित करने वाले ऐसे क़ानून जो सामान्य रूप से सभी राज्यों पर लागू न होकर किसी क्षेत्र विशेष अथा महाद्वीप विशेष के राज्यों के पारस्परिक संबंधों मे ही लागू होते हैं । उदाहरणतः अमेरिकी गणराज्यों के आपसी संबंधों मे लागू होने वाले कुछ विशिअट नियम, जैसे दूतावासों में शरणाधिकार इसका एक उदाहण हैं ।"
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private internationa law (=conflict of laws)"वैयक्तित अंतर्राष्ट्रीय विधि, वैयक्तिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनकिसी राज्य में उत्पन्न ऐसे विवाद जिनका संबंध राज्यों से न होकर व्यक्तियों से हो और विवाद से संबंधित इन व्यक्तियों के राष्ट्रीय या राजनीतिक इकाइयों के कानूनों में भिन्नता पाई जाती हो । ऐसी स्थितियों में लागू होने वाले नियमों के समूह को `वैयक्तिक अंतर्राष्ट्रीय` विधि कहते हैं ।"प्रतिपुष्टि
prize law"नौजित माल विधियुद्ध -व धि का वह भाग जिसका पालन नौजित माल न्यायालय द्वारा किया जाता है । यह कोई संहिताबद्ध विधि नहीं है यद्यपि सन् 1909 के लंदन सम्मेलन में इस दिशा में प्रयास किया गया था । सम्मेलन के अन्त में जो घोषणा - पत्र जारी किया गया वह यद्यपि राज्यों की संपुष्टि प्राप्त नहीं कर सका, किंतु फिर भी वह राज्य - व्यवहार का प्रामाणिक संकलन माना जा सकता है । वास्तव में नौजित माल विधि को विकसित करने का श्रेय अमेरिका और ब्रिटेन के न्यायाधीशों को है जिनमें लार्ड स्टोवेल तथा सर सेम्युअल इवांस के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।"प्रतिपुष्टि
public international law"सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनसार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि
प्रभुतासंपन्नि राज्यों के पारस्परिक संबंधों में लागू होने वाली नियमावली ।
दे. International law भी ।"
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regional international law"क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय विधि,क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय कानून
विश्व के सी क्षेत्र विशेष में विकसित और उसी क्षेत्र के देशों द्वारा स्वीकृत परस्पर व्यवहार मे लागू होने वाले नियम जैसे लातीनी अमेरिकी देशों द्वारा स्वीकृत राजनयिक शरण देने संबंधी नियम । ये नियम सामान्य अथवा सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्न और स्वतंत्र होते हुए भी क्षेत्र विशेष के सदस्य - राज्यों के लिए उनकी सहमति से बाध्यकारी हो सकते हैं । वर्तमान काल में क्षेत्रीय धरातल पर कार्य कर रहे अनेक राजनीतिक अथवा आर्थिक समुदायों एवं संगठनों से भी अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के क्षेत्रीय नियमों का सृजन हो सकता है ।
दे. particular international law भी ।"
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sources of international law"अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोतअंतर्राष्ट्रीय विधि के स्त्रोत से तात्पर्य है वे पद्धतियाँ और प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के नियम निरूपित होते हैं और क़ानूनी बल प्राप्त करते हैं ।
ओपेनहायम के मतानुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि का एकमात्र स्रोत है राज्यों की पारस्परिक सहमति । साम्यवादी लेखक भी राज्यों की पारस्परिक सहमति को अंतर्राष्ट्रीय विधि का अनन्य स्रोत मानते आए हैं ।
ओपेनहायम के मतानुसार, चूँकि राज्यों की सहमति दो प्रकार से व्यक्त की जा सकती है, अतः अंतर्राष्ट्रीय विधि के दो स्रोत हैं । 1. संधइयाँ जो राज्यों की स्पष्ट सहमति को प्रत्यक्ष और स्पष्ट लिखित रूप से व्यक्त करती हैं और 2. प्रथाएँ जो राज्यों की सहमति के अलिखित, परोक्ष एवं अव्यक्त स्वरूप हैं ।
सन्म 1945 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अनुच्छेद 38 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया गया है । (1) प्रधान स्रोत और (2) सहायक स्रोत । प्रधान स्रोतों में संधियां, प्रथाएं और सभ्य राजयों द्वारा मान्यता प्राप्त विधि के सामान्य नियम सम्मिलित किए गए हैं । सहायक स्रोतों में न्यायिक निर्णय और विधिवेत्ताओं की रचनाएँ रखी गई हैं ।"
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space law"अंतरिक्ष विधि, अंतरिक्ष, क़ानून1957 में सोवियत यान स्पूतनीक के अंतरिक्ष मे भेजे जाने से मानव प्रयास के एक नए क्षएत्र का द्वारा खुल गया जिसे बाह्य अंतरिक्ष कहा जाता है । तुरंत ही राज्यों के मध्य इस भावना ने जन्म लिया कि अंतरिक्ष के अंवेषण के लिए सभी राज्यों को समान अधइकार होना चाहिए और अंतरिक्ष अधाःस्थित राज्य के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार में नहीं होना चाहिए । इस भावना कोमूर्त रूप देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की माहासबा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अंतरिक्ष को महा समुद्रों के समान सामुदायिक प्रदेश घोषित किया गया और अंतरिक्ष की व्यवस्था संबंधी सिद्धांतों का भी निरूपण किया गया । 1967 में इन सिद्धांतों को वैधानिक रूप देने के उद्देश्य से एक संधि हुई जिसे संक्षेप मे अंतरिक्ष संधि कहते हैं । इस संधि से उस नियमावली का प्रारंभ होता है जिसे अंतरिक्ष विधि कहा जाता है । अगले वर्ष अर्तात 1968 में अंतरिक्ष यात्रियों की सहायता, उनकी वापसी तथा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए । इस समझौते में यह काह गया कि अंतरिक्ष यात्रियों को तरिक्ष में मानव जाति के दूत समझा जाना चाहिए और उनके विपदाग्रस्त होने की दशा मे सभी राज्यों को उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहना चाहिए । फिर 1972 में एक अन्य अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए जिसमें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं से हुई हानि के लिए प्रक्षेपक राज्य के अंतर्राष्ट्रीय दायित्व की व्यवस्था की गई ।
इस संधि व समझौतों और ग घोषणापत्रों के समूह को अंतरिक्ष विधि कहा जा सकता है । यह7 विधि पिछले 35 वर्षों के विकास का प्रतिफल है और यह अभी भी वाकसमान है ।"
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subjects of International law"अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषयअंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय से तात्पर्य है वे निकाय अथवा इकाइयाँ जिन पर अंतर्राष्ट्रीय विधि लागू होती है । किसी भी विधि के विषय वे व्यक्ति अथवा निकाय होते हैं जिन्हें उस विधि - व्यवस्था से अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते है और जो अपने अधिकारों के हनन होने पर न्यायिक कार्रवाई कर सकते हैं । अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय भी वे व्यक्ति निकाय अथवा संगठन हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय विधि से अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते है और जो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने अधिकारों के हनन ह ने पर आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं । इनके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय होने के लिए दो अन्य अर्हताएँ हैं । एक जो अन्य विषयों से सांविधिक अथवा राजनयिक संबंध स्थापित करने की क्षमता रखते हैं और दूसरे, जो विधि के निर्माण में भाग लेने की क्षमता रखते हैं । परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार केवल राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय माने जाते रहे हैं । परुतु वर्तमान काल मे राज्यों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, कुछ विशिष्ट गैर - राज्य इकाइयों और कुछ सीमा तक व्यक्तियों को भी अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय माना जाता है ।"प्रतिपुष्टि
transnational law"पारराष्ट्रीय विधिवर्तमान काल में अनेक लेखकों ने यह विचार व्यक्त किय है कि अंतर्राष्रीय विदि संतोषजनक पद नहीं है क्योंकि इससे यह आभास होता है कि यह विधि राज्यों के मध्य कार्यशील है जबकि उनके विचार से यह राज्यों से स्वतंत्र और सर्वोपरि वैधिक व्यवस्था मानी जीनी चाहिए । अतः इस पद से असंतुष्ट होकर अनेक लेखकों ने अनेक नामों का सुझाव दिया है । जैसे कार्बेट ने विश्व विधिस जैक्स ने मानव जाति की सामान्य विधि और फिलिप जैसप ने इसे पारराष्ट्रीय विधि कहे जाने का सुझाव दिया है । एक वर्तमान प्रकाशन में लुई हैंकिन, फ्रीडमैन और लिसिट जीन नामक तीन विद्वानों ने इसी संबोधन को स्वीकार किया है ।
अतः पारराष्ट्रीय विधि से तात्पर्य राज्यों के आचरण को नियमित और नियंत्रित करने वाले ऐसे नियमों और सिद्धांतों को सूह से है जो राज्यों से स्वतंत्र तथा उनके लिए बाध्यकारी हैं ।"
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universal international law"विश्वव्यापी अंतर्राष्ट्रीय कानून,विश्वव्यापी अंतर्राष्ट्रीय विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि के वे मूलभूत नियम अथवा सिद्धांत जो सभी राष्ट्रों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं और जिनकी बाध्यकारिता राज्यों की सहमति पर आश्रित नहीं है ।
एक दूसेर अर्थ में सर्वव्यापी अथवा सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधि विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्न हो जाती है क्योंकि विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि केविल निर्धारित क्षेत्रों अथवा महाद्वीपों तक स मित रह जाती है ।"
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Vienna Convention on the law of treaties, 1969"संधि - विधि पर वियना अभिसमय, 1969इस अभिसमय पर 23 मई, 1969 को हस्ताक्षर हुए थे और यह 35 राज्यों की संपुष्टि प्राप्त करने के उपरांत 27 जनवरी, 1980 से प्रबावकारी ह ई । इसका प्रारूप अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने वर्णों के सतत एवं अथक प्रयास से तैयार किया था । अमेरिकी विदेश विभाग ने 1971 में जारी किए गए एक वक्तव्य में यह घोषित किया कि वियना भिसमय संधि को संबंधी वर्तमान विधि एवं व्यवहार के पथ - प्रदर्शक के रूप मे समझा जाना चाहिए ।
अभिसमय में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जिन प्रश्नों का नियमन अभिसमय में नहीं किया गया है वे परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि व्यवहार द्वरा नियमित होते रहेंगे ।
यह अभिसमय संधि - विषयक अंतर्राष्ट्रीय विधि की एक व्यापक संहिता है । इसका अधिकांश भाग प्रचलित नियमों का संहिताकरण मात्र है । परंतु अभिसमय की अनेक व्यवस्थाएँ नवीन हैं जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास का प्रमाण माना जा सकता है ।
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world law"विश्व विधिदे. Transnational law. "प्रतिपुष्टि

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